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गुरुवार, 25 जुलाई 2013

प्यारे सपने



आँखो में कुछ सपने ऐसे सजने लगे
दिल के तार किसी से जुङने लगे
जिंदगी गीत गुनगुनाने लगी
दिल से दिल अब मिलने लगे
हो गई शुरूआत एक नये रिश्ते की
दिल में खुशियों के फूल अब खिलने लगे
हो गई है आदत अब हमें उनके प्यार की
ये सोचकर हम निखरने लगे
सोचा न था मिल जायेगें वो
हमे हमारी जिंदगी बनकर
बस जायेगें दिल में हमारी जान बनकर
खुश रखें हम उनको सदा ये कोशिश है हमारी
महकती रहे हमारी जिंदगानी सदा यूँ ही ये कामना है हमारी


  द्वारा- आँचल द्विवेदी

शनिवार, 29 जून 2013

आखिर मीडिया का फर्ज क्या है ?



सम्पूर्ण उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा और उससे हुये नुकसान के बारे में तो सभी को विदित है। जब भी कोई प्राकृतिक आपदा आती है तो उससे होने वाले जान-माल के नुकसान की भरपाई किया जाना आसान नही होता है। परन्तु भारत देश बहुत ही बङा देश है तथा यहाँ तरह-तरह के लोग एवं संस्कृति पाई जाती है। उसी क्रम में भारत देश का मीडिया भी है, जो सबसे तेज है। भारत में मीडिया चैनल्स द्वारा किसी भी दुर्गम से दुर्गम स्थान पर पहुँच कर, सबसे पहले समाचार दिखाये जाने की होङ सी लगी रहती है। पर ऐसे मीडिया का क्या फायदा, जिसे केवल अपनी न्यूज से मतलब हो, बाकी किसी की परेशानी से कोई मतलब न हो।

      उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा के बाद उन तथस्ट स्थानों में, जहाँ हजारों जिंदगियाँ फँसी हुई थी, कई मीडिया कर्मी वाले भी पहुँचे गये। हर एक मीडिया वाले ने उन सभी स्थानों की एवं वहाँ फँसे हुये लोगो की स्थिति के बारे में सम्पूर्ण भारतवाशियों को अवगत कराया। परन्तु किसी भी मीडिया कर्मी ने स्वयं की तरफ से एवं अपने मीडिया चैनल की तरफ से, वहाँ फँसे हुये लोगों की, किसी भी प्रकार की कोई मदद नही की। बस लाइव स्थिति का जायजा लेने में लगे रहे। इन सभी मीडिया कर्मियों को उन सभी आपदा ग्रस्त स्थानों में जाने एवं आने की व्यवस्था चैनल्स द्वारा की गई थी। पर किसी भी मीडिया चैनल से ये नही हुआ कि अगर वो अपने मीडिया कर्मी, उन स्थानों पर भेज रहे हैं, तो कम से कम उनके साथ में कुछ खाने की सामग्री एवं राहत की सामग्री भी भेज दें, जिससे वहाँ फँसे हुये लोगों को कुछ न कुछ तो मदद मिल ही सकती थी। परन्तु ऐसा कुछ भी नही हुआ। उल्टे बहुत से मीडिया कर्मियों को वहाँ फँसे हुये लोगो से यह पूँछते हुये भी देखा गया कि आप 5-6 दिन से भूखे हैं, आप कैसा महसूस कर रहे हैं। शायद उन्होनों ने ऐसी भूख कभी सही ही नही, वरना उनको ये पूँछने की जरूरत नही पङती।


सभी मीडिया चैनल्स आपदा के समय वहीँ की स्थिति का और सरकारी आदेशों का ही जायजा लेते रहें। लगभग 8-10 दिन बीत जाने के पश्चात कई मीडिया चैनल्स द्वारा राहत कोष खोले गये। परन्तु अगर वक्त रहते सरकार एवं ये मीडिया कर्मी चेते होते, काफी लोगो की जान को बचाया जा सकता था, जिन लोगों ने सिर्फ भूख के कारण तङप-तङप कर दम तोङा है। 

मंगलवार, 26 जून 2012

ऐ खुश नसीब ऐ दिलो दिलदार



ऐ खुश नसीब ऐ दिलो दिलदार
तू ही मेरा सपना तू ही मेरा प्यार
जुङा ये जीवन तुझसे ही दिलवर
बिन तेरे है अब जीना बेकार।

तू रहे खुश हमेशा ऐ मेरे दिलबर
खङी हो खुशियाँ करें तेरा इंतजार
दे दूँ प्यार मै तुझको इतना
कर ले मुझे तू सह्दय स्वीकार।

तुझको ही बसाया दिल में अपने
करदे तू मेरी कल्पना स्वीकार
सच्चा है मन और सच्चा है दिल
हर पल करूँ मै तेरी ही पुकार

ऐ खुश नसीब ऐ दिलो दिलदार
तू ही मेरा सपना तू ही मेरा प्यार।

रविवार, 17 जून 2012

पापा मेरे पापा




पापा मेरे पापा
सबसे अच्छे पापा


सबसे पहले सभी बङे-बूढे पूज्य पिता जी लोगो को फादर्स डे की बधाई। फादर्स-डे सभी पिताओं के सम्मान के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा हम पूर्वजों की स्मृति और उनके सम्मान के रूप में भी इस पर्व को मनाते है। यह दिन दुनिया के सभी देशों में अलग-अलग तिथियों में मनाया जाता है। भारत में यह दिन 17 जून को मनाया जाता है। फादर्स-डे का उत्सव सर्वप्रथम 5 जुलाई 1908 को फेयरमाँट, पश्चिम वर्जीनिया में विलयम्स मेमोरियल मेथोडिस्ट एपिस्कोपल चर्च में आयोजित किया गया था। इस आयोजन से लगभग 6 माह पूर्व दिसम्बर 1907 में मोनोगाह, पश्चिम वर्जीनिया में एक खान दुर्घटना में लगभग 300 लोगों की मौत हो गई थी। जिसमे से ज्यादातर लोग पिता थे। उनकी याद में यह पर्व सर्वप्रथम जुलाई 1908 में आयोजित किया गया था। तबसे से लेकर आज तक यह पर्व अलग-अलग देशों में अलग-अलग तिथियो में मनाया जाता है।

इस पर्व के अवसर पर सभी पिताओं को हमारा कोटि-कोटि नमन।


हैप्पी फादर्स-डे

बुधवार, 13 जून 2012

कुछ तो शर्म करो









जी हाँ, आपके सामने जो दृश्य प्रस्तुत किये गये हैं, ये दृश्य है विश्व स्तरीय रेलवे स्टेशन कानपुर सेन्ट्रल के कैण्ट साइड स्थित अनारक्षित टिकटघर की एक विन्डो के। इस टिकट विन्डो में एक महिला कर्मचारी कार्यरत थी। चूँकि टिकटघर में टिकट लेने वाले यात्रियों की संख्या लगभग 10-15 ही रही होगी और टिकटघर में लगभग 3-4 टिकट विन्डों भी कार्यरत थी। इसलिए उक्त विन्डो में कार्यरत महिला कर्मचारी अपनी विन्डों छोङकर बाहर चली गई और काफी देर तक लौटकर नही आई। इसी दौरान एक छोटा बंदर मौका पाकर विन्डो के अन्दर घुस गया। बंदर के टिकट काउण्टर में घुसने के बाद उसे जो भी वस्तु मिली, उसने उस वस्तु को फाङ दिया। टिकट रोल तक को फाङ दिया और टिकटों की बिक्री से प्राप्त कैश में जो रू0 के नोट मिले थे, उनको बंदर ने चबा-2 के फाङ डाला और नोट चबाने के साथ वहाँ रखा पानी का गिलास उठाया और गिलास मे रखा पानी पीने लगा। इतने से भी बंदर का मन नही भरा और कैश के रूप में प्राप्त सिक्कों कों मुँह में भर लिया और एक-दो सिक्के नही बल्कि उतने सिक्के जितने उसके मुँह में आ गये। फिर बंदर धीरे-धीरे विन्डों के छेद से बाहर निकला और जमीन मे पङी एक यात्री की टोकरी में बैठ गया और मुँह में भरे कुछ सिक्कों को खाने की कोशिश करी और कुछ को मुँह के बाहर निकाल दिया।

तब तक उक्त विन्डो के बगल में चल रही टिकट विन्डों में कार्यरत कर्मचारी को होश आया और वह कर्मचारी विन्डो के बाहर निकल चुके बंदर मिया को भगाने आये। पर अब कोई फायदा नही था, जो नुकसान होना था, वह तो हो ही चुका था।

इतना सब हो जाने के बाद भी उस टिकट विन्डों काउण्टर में कार्यरत महिला कर्मचारी लौटकर नही आई थी।

अब कार्यरत महिला कर्मचारी की लापरवाही वजह से हुये नुकसान को देख के तो बस यही कहा जा सकता है कि “ कुछ तो शर्म करो” ।

रविवार, 3 जुलाई 2011

हाले दिल






जिंदगी ने जख्म दिये बहुत,
पर हम उन्हे दिखा न पाये।
ढका तो बहुत सारी उम्र हमने,
पर हम उन्हें छिपा न पाये।

नही समझ पाये वो हाले दिल मेरा
तो कोई बात नही,
दुःख तो बस इस बात का है कि,
इस दर्दे दिल को उन्हे,
हम बता न पाये।

आती है याद हमें उनकी बहुत,
हम कभी भी उनको भूल न पाये।
गम तो बहुत हमे है उनके दूर जाने का,
पर वो इसे कभी समझ न पाये।

बाकी है आस इस दिल में अभी भी,
कि शायद कोई चमत्कार हो जाये।
कम हो जाये बीच के फासले फिर से,
दोस्त हमारे वो फिर से बन जाये।

रविवार, 5 जून 2011

विश्व पर्यावरण दिवस


5 जून, यानि विश्व पर्यावरण दिवस। हर साल की तरह इस बार भी 5 जून, विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जायेगा और अगले ही दिन यानि 6 जून से किसी को ये याद भी नही रहेगा कि पर्यावरण का मतलब क्या है। अब यह दिन केवल रस्म अदायगी ही रह गया है।

पर्यावरण की समस्या से निपटने के लिए सन् 1972 में संय़ुक्त राष्ट्र संघ ने स्वीडन में विश्व भर के 119 देशों का प्रथम पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया था। जिसमें सभी 119 देशों ने इसे एक ही पृथ्वी का सिद्वांत मान्य किया था। तबसे प्रत्येक वर्ष 5 जून को सम्पूर्ण विश्व में इस दिन को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है।

पर्यावरण संऱक्षण अधिनियम सर्वप्रथम 19 नवम्बर 1986 को लागू हुआ था, जिसमें पर्यावरण की गुणवत्ता के मानक निर्धारित किये गये थे। पर्यावरण संऱक्षण के नियम इत्यादि तो बन गये, परन्तु इनमें पूर्ण-रूपेण अमल नही किया गया। आज प्राकृतिक पर्यावरण संतुलन की उपेक्षा की जा रही है। हम अपने आस-पास के खान-पान, रहन-सहन, वातावरण व संस्कृति को भी भूलते जा रहे है।

पर्यावरण का मतलब केवल पेङ-पौधे लगाना ही नही है अपितु भूमि प्रदूषण, जल प्रदूषण, वायु तथा ध्वनि प्रदूषण इत्यादि सभी से पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुँचता है। प्रदूषण की रोकथाम की जिम्मेदारी जहाँ सरकार की भी बनती है, वही स्वयं-सेवी संस्थानों और संगठनों को भी आगे-आकर अपने स्थानीय लोगो को व उनके सहयोग से पर्यावरण के प्रति जन-साधारण को जागृत एवं शिक्षित करने की तथा इससे होने वाली हानि की जानकारी देते रहने की भी बनती है। 

पर्यावरण के साथ छेङ-छाङ वास्तव मे प्रकृति के साथ किये गये अपराध के तुल्य है। वास्तव में स्वच्छ पर्यावरण ही जीवन का आधार है, जबकि पर्यावरण प्रदूषण, जीवन के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगा देता है।

सुनलो गौर से दुनिया वालों
पेङ-पौधे अब लगाना है।
प्रदूषण मुक्त देश बनाके.
सुख-समृद्वि हमें फैलाना है।

शनिवार, 5 मार्च 2011

फूलों की खुशबू क्यों घट रही है ?






क्या आपने कभी सोचा की दिन-प्रतिदिन फूलों की खुशबू क्यों घट रही है ? एक रिपोर्ट के अनुसार फूलों की खुशबू से आकर्षित होकर फूलों पर बैठने वाली तितलियाँ एवं कीट अब इनके पास आने से कतरातें है। इसी कारण से कई महत्वपूर्ण परागण करने वाले कीट अब इस दुनियां से विलुप्त हो चुके है।

वैज्ञानिकों के अनुसार प्रदूषण विहीन स्थानों में फूलों की खुशबू १००० से १२०० मीटर तक पहुँचती है लेकिन वर्तमान प्रदूषित वातावरण में यह दूरी घटकर मात्र २०० से ३०० मीटर तक सिमट कर रह गई है। फलतः परागण करने वाले कीटों का फूलों तक पहुंचना अत्यंत कठिन होता जा रहा है , जिसके कारण पौधों में परागण की क्रिया बहुत कम या नहीं के बराबर हो पा रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार फूलों की खुशबू का ९० प्रतिशत भाग प्रदूषण समाप्त कर देता है। फूलों की खुशबू में पाय जाने वाले रसायन अत्यंत वाष्पशील होते है.और सरलता से ओजोन रेडीकल जैसे प्रदूषण से रासायनिक बंध बना लेते है, फलस्वरूप फूलों की खुशबू चली जाती है।

गुरुवार, 9 सितंबर 2010

जलवे पुलिस के


आज-कल अगर जलवे हैं तो वो सिर्फ पुलिस वालों के हैं। कोई भी उनको चुनौती देने को तैयार नही है। वैसे तो इन्हे जनता का रक्षक कहा जाता है । पर सोचिये अगर रक्षक ही भक्षक बन जाये तो क्या होगा।
जी हाँ, ये जो आप चित्र में रेलवे प्लेटफार्म का सुन्दर सा दृश्य देख रहे है, ये नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के एक प्लेटफार्म का दृश्य है। चित्र उतना स्पष्ट नही है फिर भी आपको चित्र में दिखाई दी जाने वाली वास्तविकता से अवगत कराता हूँ।
प्लेटफार्म से लेकर चित्र के अन्त तक आपको लोगों की एक लाइन दिख रही होगी, साथ मे नीले गोले में आपको एक पुलिस वाले साहब दिख रहे होगें। दरासल, इस प्लेटफार्म पर एक बिहार से सम्बन्धित ट्रेन लगने वाली है, औऱ इस ट्रेन में चढने वाले जनरल टिकट के यात्रियों की संख्या काफी अधिक है। सीधी-सी बात है ट्रेन में जाने वाले यात्रियों की संख्या काफी अधिक है और जनरल डिब्बों की संख्या कम , तो इस समस्या से निपटने के लिए यहाँ पुलिस वालों की ड्यूटी भी लगा रखी गयी है। कुछ ही पलों में ट्रेन प्लेटफार्म मे लग जाती है। ट्रेन के प्लेटफार्म में लगते ही सबसे पहले पुलिस वालों नें इन लोगो को एक लाइन में खङा कर दिया, दूर से देखने में लगाकि ये जनता के रक्षक भीङ से निपटने के लिए व्यवस्थित ढंग से यात्रियों को ट्रेन के जनरल डिब्बे में बैठा देगें। मगर ये क्या, ट्रेन के 3 जनरल डिब्बों के हर एक प्लेटफार्म गेट पर पुलिस वाले पहले से ही खङे हो गये और डिब्बे के वे गेट जो प्लेटफार्म की तरफ न होकर रेलवे लाइन की ओर थे, उन्हें पहले से ही बंद कर दिया गया, जिसके की कोई भी यात्री डिब्बे के दूसरे गेटों से अन्दर न आ सके। अब जनता के इन रक्षकों ने लाइन में लगे यात्रियों से एक-एक कर डिब्बे में आने को कहा। एक-एक कर यात्री डिब्बे के अन्दर जाने लगे और इन यात्रियों से एक-एक कर रकम वसूल की जाने लगी। बेचारे यात्री क्या करते, वे भी इन पुलिस वालों को वसूली की रकम देने लगे। यद्यपि इन सभी यात्रियों के पास यात्रा टिकट थे।
बात यही नही खत्म होती है, डिब्बा जैसे ही यात्रियों से फुल भर गया, वैसे ही पुलिस वाले डिब्बे से नीचे उतर गये औऱ प्लेटफार्म में बचे यात्रियों को (यात्री संख्या लगभग 150-200) ऐसे ही डिब्बे में घुस जाने की इजाजत देदी, क्योंकि तबतक इनकी जेब काफी गरम हो चुकी थी और वे इन यात्रियों को अपने हाल मे छोङकर दूसरी ट्रेंन में वसूली करने के लिए एक अन्य प्लेटफार्म मे जा चुके थे।
वैसे पुलिस का हर एक कर्मचारी एक जैसे नही होता है। कुछ पुलिस वाले तो अच्छे व्यक्तित्व के तथा सज्जन भी होते हैं। मगर सोचिये अगर सभी पुलिस के जवान इन जैसे हो गये तो देश का क्या हाल होगा। इसका उत्तर जनता पर ही छोङ देना बेहतर होगा।

रविवार, 5 सितंबर 2010

गुरू दिवस


ज्ञान दे संस्कार दे,

औऱ बनाये शिष्यों का जीवन चमन
शीश झुकाकर करते हैं हम-सब,
ऐसे गुरू-देव को शत्-शत् नमन।

हर बर्ष की तरह इस बार भी भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डाँ0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस के दिन यानि 5 सितम्बर को पूरे भारतवर्ष में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।
वास्तव में यह दिन गुरू-शिष्य के पवित्र रिश्ते को उजागर करता है। लेकिन वर्तमान-काल में यह दिन शिक्षक दिवस के रूप मे मनाया जाना लगा है अर्थात् शिक्षक औऱ विद्यार्थी का दिन। गुरू औऱ शिक्षक में बहुत अन्तर है। शिक्षक अपने विद्यार्थियों को केवल शिक्षा देता है औऱ विद्यार्थी अपने शिक्षक से विद्या को ग्रहण करते हैं, परन्तु जो गुरू होता है वह अपने शिष्यों को शिक्षा, विद्या सहित ज्ञान देता है। ज्ञान जिसका प्रयोग शिष्य अपने सम्पूर्ण जीवन-काल तक कर सकता है।
प्राचीनकाल से ही गुरूओं का बोलबाला रहा है और गुरू के दिये ज्ञान पर ही शिष्य अमल करते आए हैं। मगर गुरू शब्द ने जब से शिक्षक का रूप ले लिया है, तबसे शिक्षक औऱ विद्यार्थियों के बीच एक अलग ही अन्तर सा पैदा हो गया है। गुरूओं से हटकर शिक्षकों ने अपने मूल्यों में परिबर्तन कर लिया है। इन परिवर्तनों के कारण ही अब शिक्षकों का अपने विद्यार्थियों के प्रति उतना लगाव नही रह गया है और न ही उनके प्रति उतना निष्ठा का भाव रह गया है।
इसलिए प्रत्येक शिक्षक को गुरू बनकर अपने शिष्य को गुरू-ज्ञान देना चाहिए और प्रत्येक विद्यार्थी को एक सच्चे शिष्य के रूप मे उस गुरू-ज्ञान को ग्रहण कर अपने जीवन में उतारना चाहिए। तब तो शिक्षक दिवस मनाये जाने का कोई मतलब बनता है, अन्यथा अन्य कई दिवसों की तरह यह दिवस भी सिर्फ ढोंग दिवस का ही प्रारूप बनकर रह जायेगा।
एक सच्चे शिष्य हेतु दो पंक्तियाँ प्रस्तुत हैः-

बनकर दिखलाओ सच्चा शिष्य
औऱ अर्जित करो गुरू का ज्ञान,
गुरू के ज्ञान को जीवन में उतारो
और सारे जग में बढाओ गुरू का मान।